Osho: कहानी एक रहस्यमय गुरु की जो न कभी जन्मा न मरा

ओशो – एक परिचय: | Osho Biography in Hindi

सेक्रेड गेम्स के दूसरे सीजन में जब-जब गुरूजी (पंकज त्रिपाठी) स्क्रीन पर आते हैं तो उनके प्रवचन सुनकर या आश्रम का माहौल देखकर हम कुछ वर्ष पीछे चले जाते हैं और हमें याद आते हैं बड़ा सा कुर्ता पहने, सुर्ख सफ़ेद दाढ़ी वाला एक सख्श. जिसने कभी कहा था कि – 

जो मरा हुआ है, वही केवल मरता है। जो जीवित है उसके मरने की कोई संभावना नहीं है। जीवन के मर जाने से ज्यादा असंभव बात और कोई नहीं हो सकती। 

हम बात कर रहे हैं आध्यात्मिक गुरु ओशो की.

ओशो. पुणे वाले ओशो, अमेरिका के ऑरेगोन आश्रम वाले ओशो, भगवान रजनीश जो मृत्यु सिखाते थे.

एक योगी, आध्यात्मिक गुरु, अलोकिक वक्ता, रहस्यमय दार्शनिक, आलोचक, सेक्स गुरु, जो दुनिया के लिए आचार्य रजनीश (Aacharya Rajnish) या ओशो हैं तो अपने भक्तों के लिए भगवान रजनीश. ओशो का कोई एक नाम नहीं हो सकता, उनका जीवन सरल रेखा जैसा सीधा नहीं था, उसमें परतों के ऊपर कई परतें चढ़ी हुई हैं. ये परतें कब कितना खुलती हैं और कितना बंद होती हैं, ये आचार्य रजनीश ने भी कभी ठीक ढंग से नहीं बताया. 

ओशो भारत और दुनिया के कुछ सबसे विवादित गुरुओं में से एक रहे हैं, दुनिया भर में उनके चाहने वालों की भीड़ है तो उनकी आलोचना करने वाले या उनसे नफ़रत करने वाले भी कम नहीं हैं. 

आचार्य रजनीश के पास ब्रह्माण्ड के हर सवाल का जबाब था, उन्होंने हर छोटी से छोटी बात पर बोला और लिखा. वो साइंस, फिलोसफी, धर्म, जीवन, मृत्यु, भगवान, सेक्स सब पर खुलकर बोले. 

ओशो मनुष्य के उन्मुक्त और स्वतंत्र जीवन की वकालत करते थे, वो मृत्यु का उत्सव मनाने की बात कहते थे. उनकी लिखी ‘’सम्भोग से समाधि तक” किताब अपने समय की सबसे लोकप्रिय और विवादित किताब रही है. 

यही कारण था कि दुनिया भर के धर्म-गुरुओं और संस्थाओं ने उन्हें धर्म का दुश्मन कहा, उनके खिलाफ मोर्चे निकाले, उन्हें जान से मारने की धमकियां मिली, कई देशों से निष्कासित किया गया, उन्हें अपने यहाँ आने से रोका गया.

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इन सब बातों के बीच उन्हें अपने श्रद्धालुओं और फोलोअर्स का प्यार भी खूब मिला, लोग उनके पीछे पागल थे, उनकी बातें डूब-कर सुनते थे. वो जहां भी गये भक्तों ने मिलकर बड़े-बड़े आलीशान आश्रम खड़े कर दिए, महंगी गाड़ियाँ उपहार में दी. अपनी पूरी ज़िंदगी अपने भगवान रजनीश के साथ बने रहे.

इस पोस्ट में हमने ओशो के जीवन के कुछ किस्सों को समेटने की कोशिश की है. 

प्रारम्भिक जीवन (Osho Childhood): 

osho in childhood
Childhood of Osho
  • अपने पिता की ग्यारह संतानों में सबसे बड़े ओशो का जन्म सन 1931 में मध्यप्रदेश के रायसेन जिले के कुचवाडा गाँव में हुआ था. उनका बचपन का नाम रजनीश चन्द्र मोहन जैन था, जो बाद में आचार्य रजनीश हुआ और फिर वो ‘ओशो’ के नाम से जाने गये.
  • रजनीश का जन्म उनके नाना के यहाँ हुआ था, खुद ओशो के अनुसार उनके जीवन पर उनके नाना का बड़ा प्रभाव था. 
  • कहते हैं कि ओशो अपने जन्म के समय न तो रोये थे, न हँसे थे और ना ही तीन दिन तक दूध ही पीया था, वैध-फकीरों को दिखाया लेकिन किसी को कोई दिक्कत महसूस नहीं हुई.
  • ओशो अपनी लिखी किताब ‘ग्लिप्सेंस ऑफ़ द माई गोल्डन चाइल्डहुड’ में लिखते हैं कि दर्शन-शास्त्र में उनकी रूचि बचपन से ही थी.
  • ओशो को तैराकी का भी काफी शौक था, उनकी तैराकी को लेकर कई क़िस्से मशहूर हैं. कहते हैं की एक बार रजनीश किसी से शर्त लगा बैठे थे और दो दिनों तक लगातार तैरते रहे थे.

शिक्षा-दीक्षा और आध्यात्म का कीड़ा: 

  • ओशो को आध्यात्म और दर्शन का कीड़ा बचपन से ही लग गया था, ये उन्होंने खुद बताया है. उनकी शुरुआती पढ़ाई जबलपुर में ही हुई थी. उन्होंने आगे पढने के लिए हितकारिणी सिटी कॉलेज में एडमिशन लिया था, लेकिन उनके प्रोफेसरों के साथ तर्क और डिबेट करने की आदत के कारण उन्हें कॉलेज से बाहर निकाल दिया गया. बाद में ओशो ने डी.न जैन कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की.
  • ओशो का मृत्यु को लेकर बचपन से ही अलग आकर्षण रहा है, वो मृत्यु से जुड़े हर तथ्य को जानना चाहते थे. वो जानना चाहते थे कि मरने के बाद इंसान कहाँ जाता है. इसके लिए व 12 वर्ष की उम्र में रात में अकेले शमशान चले जाया करते थे.
  • ओशो पढ़ाई पूरी करने के बाद जबलपुर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हो गये थे और उसके साथ ही वो पूरे देश में आध्यात्म और दर्शन से जुड़े प्रवचन देना शुरू कर दिया था. उन्होंने ध्यान शिविर भी आयोजित करना शुरू कर दिया था.
  • 1960 के दशक में वे ‘आचार्य रजनीश’ के नाम से मशहूर हो गये थे और उनके भक्तों की संख्या लगातार बढ़ रही थी.

भगवान रजनीश बनने का सफ़र (Osho Life Story in Hindi)

  • 70 के दशक में वो नौकरी छोड़कर पूरे देश में घूम-घूम कर अपनी विचारधारा लोगों के साथ बांटने लगे थे. वो धर्म और नास्तिकता पर लोगों के साथ खुलकर बात करते थे. उन्होंने गाँधीवाद और समाजवाद पर भी पूरे देश में प्रवचन दिए.
  • ओशो के तर्क और प्रवचन बहुत प्रभावी और तेज थे जिसकी वजह से उनके अनुयायिओं की संख्या दिनों-दिन बढ़ रही थे. लोग उन्हें अब भगवान रजनीश बुलाने लगे थे.
  • 1969 में रजनीश को दूसरे ‘विश्व हिन्दू कांफ्रेंस’ में बोलने के लिए बुलाया गया जहां उन्होंने कहा था कि कोई भी ऐसा धर्म जो मनुष्य के जीवन को व्यर्थ बताता हो वो धर्म नहीं है. इस बात के बाद ही कई हिन्दू धार्मिक संस्थाएं उन्हें नापसंद करने लगी थी.
  • मुंबई में उन्होंने अपने साथ जुड़े लोगों का एक समूह बनाया और नव-संन्यास आन्दोलन की शुरुआत की. इसके बाद ही उन्होंने अपने आपको ‘ओशो’ कहना शुरू किया. ओशो एक लैटिन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है ‘सागर में विलीन हो जाना’.

पुणे प्रवास और विदेश में लोकप्रियता (Osho in Pune)

Osho in Pune
Osho Aashram in Pune
  • 1970 के बाद ओशो ने पुणे के कोपरगाँव में अपने आश्रम की स्थापना की, जहां वो रोज़ाना अपने भक्तों को प्रवचन देते थे और आध्यात्म पर चर्चा करते थे.
  • ओशो ने पुणे आश्रम में अलग-अलग तरह की ध्यान पद्दतियां विकसित की और आद्यात्म के साथ अनेकों तरह के प्रयोग किये. 
  • ओशो के पुणे आश्रम की ख्याति दूर विदेशों में भी फैलने लगी थी, ओशो के आश्रम में एक अलग तरह का आकर्षण था जिसकी वजह से अनेक देशों से लोग वहाँ खिंचे चले आते थे.
  • उनके आश्रम का माहौल बहुत खुला और उन्मुक्त था, वहाँ सेक्स, समाज और धर्म पर बे-रोकटोक चर्चा होती थी. इस सब से आश्रम धार्मिक कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गया था.
  • ओशो पर भारतीय संस्कृति को बदनाम करने और सनातन धर्म को बर्बाद करने के आरोप लगे. विदेशी अनुयायिओं की बढ़ती संख्या और कट्टरपंथियों के दबाव में ओशो की सरकार के साथ भी बिगड़ने लगी थी.

अमेरिका प्रवास और विवादों का सफ़र (Osho in America)

Osho in Oregon
Osho in Oregon
  • 1981 में ओशो को उनके अनुयायिओं ने अमेरिका बुला लिया जहां उनके भक्तों ने अमेरिकी प्रांत ‘ऑरेगोन’ में 65 हज़ार एकड़ में फैला भव्य आश्रम बनवाया था. इस आश्रम को ‘रजनीशपुरम’ के नाम से जाना गया.
  • अमेरिका में ओशो की दीवानगी अपने चरम पर थी, लोगों को उनके रहस्यमयी आध्यात्म और स्वतंत्र जीवन शैली का चस्का लग गया था. 
  • धार्मिक कट्टरपंथियों ने यहाँ भी ओशो का पीछा नहीं छोड़ा और उन पर अमेरिकी संस्कृति को बर्बाद करने के आरोप लगे. उनके आश्रम पर ड्रग्स देने और देह व्यापार के भी आरोप लगे.
  • अमेरिकी सरकार ने ओशो को बहुत सारे आरोपों में गिरफ्तार कर लिया, उनकी सेक्रेटरी शीला माँ पर भी बायो टेरर जैसे संगीन आरोप लगाए गये.
  • दुनिया के कई देशों ने ओशो के अपने यहाँ आने पर प्रतिबंध लगा दिया. अंततः ओशो 1985 में वापस पुणे लौट आए.

अभी हाल ही में रजनीश (Osho) के अमेरिका प्रवास पर आधारित Netflix की वेब सीरीज Wild Wild Country रिलीज़ की गई थी जो बहुत ही लोकप्रिय और विवादित रही.

पुणे वापसी, बीमारी और रहस्यमय मृत्यु (About Osho Death)

Osho in last time
Dead body of Osho
  • 1985 में पुणे वापसी के बाद ओशो के तेवर और तेज हो गये थे, वो अब स्थापित धर्मों और भगवान के रूप पर पहले से ज्यादा प्रखर होकर बोलने लगे थे. 
  • ओशो को शक़ था कि अमेरिका में जेल जाने के बाद उन्हें जहर दिया गया था जिससे कि उनका शरीर लगातार कमजोर होता चला गया था. 19 जनवरी 1990 को ओशो की मौत हो गयी.
  • उनकी मौत को लेकर कई बातें की जाती हैं, खुद ओशो ने अमेरिका में जहर दिए जाने की बात कही थी तो कुछ लोग कहते हैं कि उनके ही आश्रम के लोगों ने उनकी संपत्ति हड़पने के लालच में ओशो को मार दिया.
  • ओशो के उस समय के डॉक्टर ने भी उनकी मौत पर सवाल उठाये हैं कि उनसे गलत ब्योरे देकर मृत्यु प्रमाण पत्र बनाने का दबाव डाला गया था और उन्हें अंतिम समय में ओशो को देखने नहीं जाने दिया गया था.
  • ओशो की माँ भी कई बार ये कह चुकी हैं कि लोगों ने धन के लालच में उनके बेटे को मार डाला.
  • ओशो की मृत्यु के बाद भी विवादों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा, उनकी वसीयत और संपत्ति को लेकर अब भी कोर्ट में केस चल रहा है.

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ओशो (Osho) अर्थात श्री रजनीश का जीवन चाहे कितना ही विवादित रहा हो लेकिन उन्होंने लोगों को जीवन, मृत्यु, समाज, धर्म इत्यादि को देखने की नयी नज़र दी. ये बात पुणे स्थित आश्रम में उनकी समाधि पर लिखी बात से समझा जा सकता है. वहाँ लिखा है: ओशो, जो न पैदा हुए न मरे. इस धरती पर 11 दिसम्बर 1931 से 19 जनवरी 1990 के बीच भ्रमण के लिए आए.


Sources: Wikipedia | Osho World

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